Thursday, July 15, 2010

गोत्र के भगवान!

जलीकटी




Declaration: सबसे पहले एक बात मैं स्पष्ट करना चाहूँगा कि इस लेख में मैने कुछ घरों में नारी को मिलने वाली इज़्ज़त की तुलना एक जानवर से की है तो उसका सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही मक़सद है कि उन लोगों की ग़लती सुधारना और इस चलन कापुरज़ोर विरोध करना. अगर हम जैसे लेखक और बुद्धिजीवी इस तरह की स्त्रियों को समान अधिकार दिलवाने की चेष्टा भी नहीं करते तो हमारी तुलना भी बुराई के आगे दुम हिलाने वाले उसी जानवर से की जानी चाहिए, मेरा ऐसा मानना है . This article
is written with due respect towards all the woman in every part of the world.
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ऑनर अपने देश में सबके पास है! शर्म हो न हो, ईमान हो न हो, चरित्र हो न हो मगर एक अदद हत्या के लिए ज़रूरी 'ऑनर' आपको ज़्यादातर इंसानों जैसे दिखने वालों में मिल ही जाएगा.यह ज़्यादातर उन जगहों पर पाया जाता है जहाँ लड़की पैदा होती है. लड़की पैदा होते ही घर के माँ, बाप, चाचा, ताऊ, भाई, उनके दोस्त, घर के कुत्ते तक....सब 'ऑनर' वाले बन जाते हैं और उस लड़की के पालनहार ही नहीं, भाग्यविधाता भी हो जाते हैं.ऐसा माहौल बन जाता है जैसे घर में कोई इंसान नहीं, कोई पालतू जानवर पैदा हुआ है. आप समझ गए होंगे किस जानवर की बात कर रहा हूँ मैं! पूरा कसूर उनका भी नहीं है. पैदा होने वाली 90 प्रतीशत कन्याएँ या तो डर से या खुशी से ही, कुछ 'behave' ही इस तरह करती है कि आसपास केघर वालों के भी 'अरमान' जाग जाते हैं और और वो भी अपने घर में एक जीती जागती स्त्री की जगह उसी पालतू जानवर का स्त्रीलिन्ग देखना चाहते हैं, जो सारी उम्र उनके पाँव चाट्ती रहे और .......क्या कहूँ इससे ज़्यादा.....बात बहुत ज़्यादा हैरान करने वाली है. दिल्ली जैसे शहर के पड़ोस में ही नहीं, अब तो अंदर तक ये हो रहा है. लड़की ने जहाँ अपनी मर्ज़ी का जीवन साथी चुना नहीं, बस तय हो गयी दोनों की मौत. ना सिर्फ़ इंसानियत को, बल्कि इस इतने 'ज़बरदस्त' देश के क़ानून तक को भी सरेआम ठेंगा दिखाया जा रहा है राजनेता चुप्प है, मीडीया भौंपू का गला फाड़-फाड़ कर चिल्ला रहा है, और करने वाले अपना काम पूरे 'ऑनर' से निबटाते जा रहे है वोट बैंक की राजनीति ने खाप के खिलीफ़ बोलने का नेताओं का हक़ छीन लिया तो हिम्मतें कुछ इस क़दर बढ़ गयीं कि आज सरेआम कैमरे के सामने आ कर कोई भी, जो वैसे किसी राह चलते कि गाली और धक्का खा कर भी हाथ जोड़ कर आयेज बढ़ जाएगा, ऐसा बहादुर बहुत अंदाज़ से बोल रहा है कि हाँ, हम ऑनर वाले हैं और हमने 2 निहत्थे बेगुनाहों को, जो हम पर भरोसा करते थे,हमको माँ-बाप मानते थे, उनको धोखे से बड़ी बेदर्दी से, बड़ी बेरहमी से,कसाई की तरह काट कर मौत के घाट उतार दिया है, सिर्फ़ इसलिए क्योंकि उन्होने 'हमारी', हम जैसे 'महाराजाधिराज' की इच्छा के विरुद्ध कदम रखने की जुर्रत की थी, और हम तो 'ऑनर' वाले लोग है! तो क्या हुआ अगर हमारे उपर हत्या से लेकर बलात्कार के मामले हैं?! तो क्या हुआ अगर पूरे देश की पुलिस हमारे नौनिहालों के पीछे घूम रही है और उनपर गब्बर सिंग की तरह पूरे 50 हज़ार का ईनाम रखा है.

गए वो वक़्त जब इस देश के माँ-बाप देश की खातिर जान देने और जान लेने वालों पर फख्र महसूस किया करते थे. आजकल तो वो बदकारी, जिसे 'ऑनर' का नाम दिया गया है, उसकी खातिर बेगुनाहों को जानवरों की तरह काट कर आने वालों को सम्मानित करने का रिवाज बनता जा रहा है. इसके लिए क़ानून को बदलने तक की भी आवाज़ें उठ रही हैं. दिन दूर नहीं जब ऐसे लोगों को किसी समारोह में सम्मानित करके कोई मेडल या कोई 'श्री' का सम्मान देने की भी माँग उठेगी! क्यों नहीं, जहाँ देश पर राज करने के लिए चुने हुए राजनेता ही गुनहगारों के आगे मजबूर नज़र आने लग जाएँ वहाँ तो जंगल राज की आवाज़ उठेगी ही. आख़िर यहाँ लोकतंत्र भीड़-तंत्र ही तो है! भीड़ के पास ही वोट है, भीड़ के पास ही राज. भीड़ की ही चलेगी.
आगे पढ़िए ...जलीकटी....



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